जलाओ दिये - कविता - राम प्रसाद आर्य

जलाओ दिये, पर रहे ध्यान इतना,
रह गया है दिये में कि अब तेल कितना।
कि बाती बुझी है या जली है तो कितना,
बदलनी  है बाती, डालना तेल कितना।।


जलाओ दिये, पर रहे ध्यान इतना,
कि नामो निशां तम तनिक रह  न जाये।
झोंका भले वात, अंधड़ भी आये,
दिया बुझ न पाये भले तीव्र कितना।।


जलाओ दिये, पर रहे ध्यान इतना,
दे रहे ज्योति इतनी, कि जरूरी है जितना।
प्रबल तो नहीं तम ज्योति पर हो रहा है,
अबल तो नहीं कोइ दिया गर तो कितना।।


जलाओ दिये, पर रहे ध्यान इतना,
ज्योति के सामने तम तनिक टिक न पाये।
ज्योति जग-मग जगत, फर्क धरा नभ न आये,
चाँद, तारे दिये दीप्त शरम सर झुकायें।।


राम प्रसाद आर्य - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos