मैं हूँ एक ग़रीब मज़दूर
हालत ने कर दिया मजबूर।
गाँव छोड़ शहर में आया
पेट परिवार का भर नहीं पाया।।
दिन भर में इतना ही कमाता
शाम को खाकर मैं सो जाता।
रोजाना का यही हाल है
बच्चों, बुढ्ढो का यही हाल है।।
आज महामारी ऐसी आई
ग़रीबों मे बेरोज़गारी छाई।
कल भरता था हमारा पेट
आज देख रहे यह मोटे सेठ।।
रोटी, कपड़ा और मकान
आज रोड़ पर मज़दूर किसान।
पैर बन गया आज जहाज
मीलो चल रहा आज किसान।।
बच्चे-बच्ची बिलख रहे है
माँ-बाप आस लगाऐ हुऐ है।
बेटा शहर से कमाकर लाऐगा
उस दिन भर पेट खाना खाऐगा।।
घर ही घर में क्या रखा है
बाहर झांक कर सब देख लो।
अपने ग़रीब भाई मज़दूरों को
मानवता का प्यार दो।।
क्यों कि मैं हूँ एक ग़रीब मज़दूर
हालत ने कर दिया मजबूर।।।
गणपत लाल उदय - अजमेर (राजस्थान)