शिव स्तुति - कविता - तेज देवांगन

तू आश है, विश्वास है, तू हर मानव तलाश है।
तू क्षण है, भंगुर है, तू मानव शक्ति आतुर है।
तू ज्ञान है, विज्ञान है, तू सत्यता की प्रमाण है।
तू चल है, अविचल है, तू ए धरा प्रबल है।
तू मान है, सम्मान है, तू दर्रा दर्रा अभिमान है।
तू ओत है, तू प्रोत है, तू धरती तू ही स्रोत है।
तू अडिग है, आडम्बर है, तू जग धरा दिगम्बर है।
तू काल है, महाकाल है, तू शत्रुओं की त्रिकाल है।
तू आदि है, अनन्त है, तू शून्य, तू ही सर्वंत है।
तू ओश है, तू छाव है, पापियों की लाव है।
तू लाश है, कैलाश है, तू अन्नग्नत विश्वास है।
तू निर्मल है, तू निराकार है, तू पवित्रता आपार है।
तू रंग है, तू भुजंग है, तू सर्वथा सर्व संग है।
तू आन है, तू शान है, तू विश्व का कल्याण है।

तेज देवांगन - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

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