ग़रीबी - कविता - मधुस्मिता सेनापति

ग़रीबी में पैदा हुए,
क्या ग़रीबी में ही
मर मिटेंगे।
कितने ख्वाब लेकर
आए थे हम
इस जहान में,
क्या इस अधूरेपन में ही
दम हम तोड़ेंगे...!!

जहां से शुरुआत हुई थी,
वहीं पर आज हम
अटक गए।
सपनें जो देखे थे एक दिन
बढ़ने की मंज़िल की तरफ,
आज ग़रीबी के चलते
सब अधूरे ही रह गए...!!

ग़रीबी में पैदा हुए,
क्या ग़रीबी में ही
मर मिटेंगे ।
कितने ख़्वाब लेकर
आए थे हम 
इस जहान में,
क्या इस अधूरेपन में ही
दम हम तोड़ेंगे...!!

हम क्या ज़िंदगी की
नज़ाकत देखने की कोशिश किए,
यह पूरी दुनिया की
तहक़ीक़ ही बदल गई।
जो सपनें थे मन में एक दिन
आज सब कुछ अधूरे ही रह गए.....!!

मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)

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