संदेश
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
( 1 ) उर तल से जोहार! मिहिर वसु विश्व-विधाता। जग के पालनहार, सृष्टि के प्राण-प्रदाता। हे ईश्वरीय नेत्र, तुम्हें पूजे जग सारा। तुम ही ह…
परिंदे प्यार के - कविता - गणपत लाल उदय
ऐसे पकडो़ ना हमें कोई छल - कपट करके कोई। फैलाओ मत जाल तुम रखो ना पिंजरे में कैद तुम।। क्यों चलते हो चाल कोई उड़ने दो हमको शान वही…
अमानवीय कृत्य - कविता - शिव शिल्पी
रात हो जाए, आँख लग जाए दर्द ए गम कुछ पल सो जाए। वक़्त ने ऐसा कहर बरसाया, ये जख्म उससे सहा ना जाए।। कितना आदि नशे का जमाना, मस्ती में च…
दूरियाँ - कविता - पुनेश समदर्शी
यूँ ही दूर नहीं होता कोई अपनों से, मजबूरियाँ ही दूर कर देती हैं। यूँ ही नहीं पिघलते पत्थर आहों से, खामोशियाँ भी चूर कर देती हैं। ना उद…
त्योहार - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
कई सालोंं से लग रहा है कि त्यौहार में वह ख़ुशी हँसी उत्सुकता प्रतीक्षा और रुझान अब आम हो गया है क्योकि दिवाली के दिन व् अमावस की रात स…
जीवन कुछ इस कदर - कविता - मधुस्मिता सेनापति
जीवन कुछ इस प्रकार है कि वहाँ रहने के लिए जमीन है, छत के लिए आसमान है, खाने के लिए दो वक्त की रोटी नसीब नहीं फिर भी, जीवन जीने की आस ह…
ज़िंदगानी - कविता - तेज देवांगन
कोल्हू की बैल हो गई है ज़िंदगी मेरी दिन रात जुते जा रहा हूँ। चंद सुख की चाह में दर्दे दुख से पिसे जा रहा हूँ। माद शरीर अपंग कर वाहनों …
वो एक मुद्दत का इश्क़ - कविता - अमित राज श्रीवास्तव
बहुत बेचैन होता हूँ आपकी हर एक बातों से, इश्क़ भी पनपता हैं कहीं दिल में पर एक अजीब विडंबना है। मेरा बेचैन होना, इश्क़ का पनपना मुझे बेव…
गीत और नवगीत - गीत - शिवचरण चौहान
कैसे जानेंगे हम अंतर गीत कौन नवगीत? बोलो मेरे मीत?? खींच न पाया समय शिला पर कहीं एक भी रेख। कैसे उसे मान ले हम सच का पक्का अभिलेख। अगर…
स्त्री की वेदना - कविता - आर एस आघात
तू क्या समझ पायेगा मेरे बदन के दर्द की हद को जिसे तू हर दिन नोंचता है । सारे जहाँ की ख़ुशी तू मुझमें ढूँढता है फ़िर भी तमाम खामियाँ मुझम…
पुस्तक - दोहा छंद - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
पोथी पुस्तक मोल कर, पढ़े नहीं अब कोय। कैसे इस संसार का, कहो सुमंगल होय। लोग करें अब आप को, ई-बुक से सन्तुष्ट। इस कारण माँ शारदे, हुई जग…
रोटी - कविता - डॉ. कुमार विनोद
चेहरों पर उभरी, चिंता की रेखाएं कहती हैं आदमी के संघर्ष की गाथाएं रोटियों को पाने की ललक में ठहर जाता है वक्त। इज्जत के पानी और स्वाभि…
हरि हर लो पीर हमारी - कविता - रमाकांत सोनी
हे परमेश्वर हे भगवान दीन बंधु हे दया निधान जगतपति जग पालन कर्ता संकट मोचन सब दुख हर्ता। सृष्टि नियंता हे गिरधारी नटवर नागर चक्रधार…
घरौंदा - हाइकु - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
एक सपना मन में सजाना है बने घरौंदा बना घरौंदा जीवन खुशहाल नही बेहाल बिखरी जब अरमानों की आस नही वो पास जीना है तो मत हो तू उदास रख वि…
एक शाम - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
शाम-ए-अवध तेरा दीदार हो गया, सजी एक महफिल में तेरा नाम हो गया। फिर इतिहास के पन्नों को पलट, फलक पे तेरा नाम आफताब हो गया। गुजरे जम…
प्रेम वृक्ष - क्षणिकाएँ - रमेश धोरावत
(१) कब हरा रहा प्रेम वृक्ष..? जिसमें "समर्पण" की जड़ें नहीं होती। (२) कब फ़ूटे प्रेम वृक्ष के "कोंपल" ? जिसको प्र…
छठ पूजन दें अर्घ्य हम - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
आदिदेव आदित्य कर, धन मन जन कल्याण। छठ पूजन दें अर्घ्य हम, हरें पाप जग त्राण।।१।। राग द्वेष हर शोक मन, हर लोक परीताप। आतंकी दानव बने,…
नशा के परिणाम - कविता - आशाराम मीणा
खुशहाली के खेतो को वीरान बना देता हैं। सुहागिन की मांग को विधवा बना देता हैं। सहोदरा के प्रेम को वो निर्जन बना देता हैं। सच कहूँ तो न…
रुक ना जाना तू कहीं हार के - कविता - पुनेश समदर्शी
जीतता चल राह के हर दंश को तू मारके, रुक ना जाना तू कहीं हार के। तेरी मंजिल तुझमें है ये तू जान ले, वीर तुझसा नहीं है जहाँ में खुद को प…
दूध का कर्ज़ - कविता - गणपत लाल उदय
माँ का जगह कोई ले नही सकता दूध का कर्ज उतार नही सकता। माँ ने कितनी ठोकर है खाई दूध का लाज रखना मैरे भाई।। न जाने कहां-कहां मन…
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