जीवन कुछ इस कदर - कविता - मधुस्मिता सेनापति

जीवन कुछ इस प्रकार है कि
वहाँ रहने के लिए
जमीन है, छत के लिए
आसमान है, खाने के लिए
दो वक्त की रोटी नसीब नहीं
फिर भी, जीवन जीने की आस है....!!

वहीं एक ओर जीवन कुछ इस कदर है कि
रहने के लिए आलिशान घर है
खाने के लिए अनेक व्यंजन है
काम करवाने के लिए नौकर
और महंगी गाड़ी भी है
पर वहाँ वह अपनापन नहीं 
वहाँ कोई रिश्ता नहीं
बस अजनबी होकर सभी रहे गये .....!!

सुविधावादी बनने के लिए
जहां हम सहजता को अपनाते गये
जीवन की मुश्किल घड़ी में 
जो परिवार हमारे साथ था
हम अपनी सुविधा के लिए
उनसे दूर होते रहे.....!!

विकास की भाषा को समझने के लिए
हम पाश्चात्य संस्कृति को अपनाते अपनाते
अपनी ही प्राचीन संस्कृति को भूलते रहे
जिस संस्कृति ने हमें
जीवन जीने की
शैली सिखाई थी
उससे आज हम सब
दूर होकर, जीवन के चक्रव्यूह में
उलझते गये.....!!

मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)

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