अमानवीय कृत्य - कविता - शिव शिल्पी

रात हो जाए, आँख लग जाए
दर्द ए गम कुछ पल सो जाए।
वक़्त ने ऐसा कहर बरसाया,
ये जख्म उससे सहा ना जाए।।

कितना आदि नशे का जमाना,
मस्ती में चूर हो चलता ही जाए।
तू कुचलता गरीबी को पहिए से,
क्यों बन के शराबी गाड़ी चलाए।।

कितने निकलते हैं लोग सड़क से,
जो बहते रक्त की तस्वीर ले जाए।
कोई हमदर्द ना अब तक है आया,
जो उस पीड़ित की चिकित्सा कराए।।

नेता भी देख के आगे को बढ़ गए,
किसी ने ना उसके गहरे घाव भराए।
कितने गुजर गए एंबुलेंस वहां से,
कोई ना उसको चिकित्सालय ले जाए।।

मानवता अब गर्त में डूबी जाती है,
अब फिर  ज्ञानी विवेकानन्द आए।
दीन दुखियों के दर्द मिटाने खातिर,
फिर से शिरडी के साईं बाबा आए।।

शिव शिल्पी - रायसेन (मध्य प्रदेश)

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