दूध का कर्ज़ - कविता - गणपत लाल उदय

माँ का जगह कोई ले नही सकता 
दूध  का कर्ज उतार नही  सकता। 
माँ ने  कितनी  ठोकर  है खाई
दूध  का लाज  रखना मैरे भाई।।

न जाने कहां-कहां मन्नत मांगी
मंदिर, मस्जिद, चर्च  में  जाती।
तू जग में आऐ अर्ज ये लगाती 
पीड़ा कष्ट  बहुत  दुखः उठाती।।

मत कर कभी माँ का अपमान
घर से निकाल के उसको बाहर।
कभी तू भी तो माँ-बाप बनेगा
तब तुझ पर यह  कहर बरसेगा।।

तुझ पे कभी कोई आँच न आऐ
ऐसा  माँ  सुरक्षा  कवच  बनाऐं।
तुझसे रूठजाऐ चाहे जग सारा
सगा पिता भी  हो चाहे  तुम्हारा।।

माँ का मन  कोमल रहता इतना
अपने आप  से बहुत ही  ज्यादा।
माँ  का  सदा  ही रहता आशीष 
चाहे दो फिर भी दुखः तकलीफ।।

क्यों  कि तुम हो माँ का ही अंश 
माँ नहीं चाहती कोई भी विधवंश।।।

गणपत लाल उदय - अजमेर (राजस्थान)

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