नशा के परिणाम - कविता - आशाराम मीणा

खुशहाली के  खेतो को वीरान बना देता हैं।
सुहागिन की मांग को विधवा बना देता हैं।
सहोदरा के प्रेम को वो निर्जन बना देता हैं।
सच कहूँ तो नशा जीवन को बेकार बना देता है।।

घर की शांति को शैतानों की बारात बना देता हैं
बीबी बच्चे भूखे मरे ऐसे हालात बना देता हैं।
परिवार की आबरु का वह मोल बता देता हैं।
सच कहूँ तो नशा जीवन को बेकार बना देता हैं।।

ऐसी लत लगती हैं जीवन की दुर्गति बना देता हैं।
अपनी डिंग ठोकने वालों की संगति बना देता हैं।
जेब तुमारी खाली करदे ऐसी स्थिति बना देता हैं।
सच कहूँ तो नशा जीवन को बेकार बना देता हैं।।

अपने माता पिता को स्वार्थ में गैर बना देता हैं।
अर्धांगिनी को पड़ोसियों की संगीनी बना देता हैं।
जायदाद को बेच के अंधा फकीर बना देता है।
सच कहूँ तो नशा जीवन को बेकार बना देता हैं।।

बच्चों के सपनों को जिंदा शमशान बना देता हैं।
सामाजिक चाल चलन को कफन बना देता हैं।
घर के मन मंदिर में व्यसन का हवन बना देता हैं।
सच कहूँ तो नशा जीवन को बेकार बना देता हैं।।

आशाराम मीणा - कोटा (राजस्थान)

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