रुक ना जाना तू कहीं हार के - कविता - पुनेश समदर्शी

जीतता चल राह के हर दंश को तू मारके,
रुक ना जाना तू कहीं हार के।

तेरी मंजिल तुझमें है ये तू जान ले,
वीर तुझसा नहीं है जहाँ में खुद को पहचान ले।

जिंदगी की मुसीबतों से जो तू हार जायेगा,
वीर नहीं तू कायर कहलायेगा।

बाधाएं आयेंगी राह में जरूर पर उनसे न तुझे डरना होगा,
परिश्रम ही है सफलता की चाबी डटकर तुझे सामना करना होगा।

गैर भी होंगे तेरे अपने जो तू सफल होगा,
अपने भी न होंगे तेरे अपने जो तू विफल होगा।

होता है चमत्कार को नमस्कार सदा ये तू जान ले,
खास है इस जहाँ में खुद को तू पहचान ले।

सींचता चल जीवन वृक्ष को बचाकर हर खरपतवार से,
रुक ना जाना तू कहीं हार के।

पुनेश समदर्शी - मारहरा, एटा (उत्तर प्रदेश)

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