स्त्री की वेदना - कविता - आर एस आघात

तू क्या समझ पायेगा
मेरे बदन के
दर्द की हद को
जिसे तू हर दिन
नोंचता है ।

सारे जहाँ की ख़ुशी
तू मुझमें
ढूँढता है
फ़िर भी तमाम
खामियाँ
मुझमें देखता है ।

मैं पीड़ित हूँ
समय दर समय
तेरे ज़ुल्म से
फ़िर भी
तू मुझको
बेदर्द समझता है ।

आर एस आघात - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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