एक शाम - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

शाम-ए-अवध 
तेरा दीदार हो गया,
सजी एक महफिल 
में तेरा नाम हो गया।
फिर इतिहास के 
पन्नों को पलट,
फलक पे तेरा 
नाम आफताब हो गया।
गुजरे जमाने की शाम 
में फिर रंगीन हो गई,
शाम-ए-अवध की महफिलें 
फिर हसीन हो गई।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos