गीत और नवगीत - गीत - शिवचरण चौहान

कैसे जानेंगे
हम अंतर
गीत कौन नवगीत?
बोलो मेरे मीत??
खींच न पाया
समय शिला पर
कहीं एक भी रेख।
कैसे उसे
मान ले हम
सच का पक्का अभिलेख।
अगर वक्त को
वाणी न 
दे पाए मेरे मीत।
कैसे उसे
मान लें प्यारे
यह ही है नवगीत।।
बोलो मेरे मीत।।
नहीं अगर कोई
पढ़ पाए
चेहरों की भाषा।
शोषित,पीड़ित
लोगों के मन 
जगे नहीं आशा।
जगा न पाए
अगर किसी के
हारे मन में प्रीति।
कैसे उसे
मान लें प्यारे
यह ही है नवगीत।।
बोलो मेरे मीत।।
कितनी भी
परिभाषा गढ़ लो
करवा लो तुम अर्थ।
नहीं आम जन
तक तुम पहुंचे
सारा कुछ है व्यर्थ।
जन मन के
कठों पर  बिहसे
हो मधुरिम संगीत।
पीड़ा और
प्रेम को स्वर दे
वही मीत नवगीत।।
सुन लो मेरे मीत।।

शिवचरण चौहान - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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