आदिदेव आदित्य कर, धन मन जन कल्याण।
छठ पूजन दें अर्घ्य हम, हरें पाप जग त्राण।।१।।
राग द्वेष हर शोक मन, हर लोक परीताप।
आतंकी दानव बने, करें नाश संताप।।२।।
कन्द मूल ठकुआ फली, भर डागर फल सूप।
हे दिनकर स्वीकार कर, निद्रा तज कर धूप।।३।।
महापर्व पूजन छठी, तीन दिवस उपवास।
करें सुखी पति पूत को, भारत सकल विकास।।४।।
धन वैभव सुख शान्ति जग, दें दुनिया आलोक।
प्रकटित प्रातः अरुणिमा, ग्रहण अर्घ्य हर शोक।।५।।
काश्यपेय जीवन जगत, सृष्टि विधायक सूर्य।
सहस्रशिखा हिरण्यमय, छठ पूजन सम्पूर्य।।६।।
ग्रहाधीश रवि अश्वरथ, भ्रमणशील संसार।
अति पावन पूजन छठी, ज्योतिर्मय आचार।।७।।
सिन्धु सरोवर सरित नद, जगमग दीप किनार।
व्रती पोछि पथ आँचरा, दिनकर मन संचार।।८।।
परम भक्ति छठ कठिनतम, विधि विधान उपास।
श्रद्धा निर्मल शूचिता, छठि पूजा रख वास।।९।।
दीनानाथ पूजन प्रभु, फलदायी सभ काज।
अच्युत हर आतंक को, समरस कर समाज।।१०।।
हरें व्याधि मानस मनुज, भरें ज्योति नवप्रीत।
प्रकृति मनोहर चारुतम, मानवता संगीत।।११।।
कर निकुंज पुष्पित फलित, जपे गायत्री मंत्र।
करें मनोरथ पूर्ण जग, हरें शत्रु षड्यंत्र।।१२।।
माँ छठ पूजन लोक में, करें सुमंगल विश्व।
नारायण हर तिमिर को, बचे सृष्टि अस्तित्व।।१३।।
नवप्रभात नवरंग से, रंजित जन संसार।
नमन सतत अवसान हो, सूर्योदय आभार।।१४।।
चलूँ दण्डवत घाट तक, अस्त भानु अरु भोर।
खड़े सलिल कर जोड़कर, अर्घ्य सूर्य भर नोर।।१५।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली