संदेश
बचपन के दिन - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
कितने सुंदर, बेमिसाल थे, छुटपन के दिन बचपन के दिन, रह ना पाते सखियों के बिन। रह ना पाते सखियों के बिन। खेलकूद थे मस्ती थी, काग़ज़ वाली क…
याद आते हो तुम - गीत - सूरज 'उजाला'
याद आते हो तुम, याद आते हो तुम जब कभी आँख से दूर जाते हो तुम व्हाट्सएप पे वो एसएमएस जो देखा सबा कुछ तो लिखते हो और फिर मिटाते हो तुम म…
याद तुम्हारी मैं बन पाता - गीत - रमाकान्त चौधरी
याद तुम्हारी मैं बन पाता तो जीवन जीवन होता। मुझे बुलाती ख़्वाबों में तुम अपना मधुर मिलन होता। रोज़ मुझे तुम लिखती पाती, उसमें सब सपने ल…
मर्म-स्मृतियाँ - कविता - प्रवीन 'पथिक'
आँखों मे डर का ख़ौफ़, दिल मे भयानक मंज़र, मन मे अप्रत्याशित आशंका, और जीवन से मोह भंग– निविड़ता से उत्पन्न दुःख की ऐसी सूक्ष्म अनुभ…
यादें - कविता - ब्रज माधव
ऊँची आलमारी पर रखी कोई धूल में लिपटी किताब उसके फटे पन्ने की अधूरी कहानियों को कोरे काग़ज़ पर एकाकी गुनगुनाते किसी याद से जन्म लेती है …
अनोखा स्वप्न - कविता - प्रवीन 'पथिक'
हर उदासी की, एक कहानी होती है। जिसे पढ़ना, सब पसंद करते हैं। भोगना नहीं। हर कहानी में एक दर्द होता है! जो भले हृदय में न हो, पर,…
रविवार - कविता - राजेश 'राज'
सुन! कल रविवार है, बेफ़िक्री से खेलेंगे समय की बंदिशें दूर रख देंगे सुबह जल्दी आना। एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण योजना बनाते थे हम, मनपसंद …
माँ की याद - कविता - मेहा अनमोल दुबे
नियम, जपतप में लगे हुए, दिव्य शांत स्वरूपा, मेहा बन फुलों पर सो गई या मौन में सदा के लिए तल्लीन हो गई, दृष्टिकोण में तो सब जगह हो गई…
रोते दोनों सारी रात - कविता - राहुल भारद्वाज
कैसे भूल सकूँगा मैं, वह काली-काली अंधियारी रात। बहा ले गई जो मेरा गुलशन, कैसी थी वो काली रात॥ माँ का सर पर आँचल था, महका करता आँचल था।…
यादों के अवशेष - कविता - नीतू कोटनाला
सभ्यताओं का चेहरा तुम्हारे जैसा होता है जिसमें होते हैं मेहनत के अवशेष होती है वो गूढ़ भाषा जिसे समझा जाना मुश्किल है होते हैं वो दुख…
प्यारी माँ - कविता - मेहा अनमोल दुबे
प्यारी माँ! तुम बहुत याद आती हो, जब दिन ढलता है, जब नवरात्र का दिपक जलता है, जब साबुदाने खिचड़ी कि ख़ुशबू उडती है, जब हृदय मे पीड़ा होती …
लता मंगेशकर - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
जब कभी मुझे जीवन की अद्भुत और अलहदा अनूभूति ने भाव-विभोर किया मुझे उस आवाज़ का आलिंगन महसूस हुआ। जब कभी दुख की काहिली सी परछाई ने मेरे…
बहुत दिनों के बाद - कविता - प्रवीन 'पथिक'
बहुत दिनों के बाद, लगता है ऐसे; जैसे ज़िंदगी का दायरा सिमट गया हो एक छोटी बूॅंद में। मेघों की भीषण गर्जना, सिसकियों तक; हो गई हो सीमित।…
मधुर स्मृति - कविता - राजेश 'राज'
अत्यंत लघु परन्तु अविस्मरणीय अकीर्तित प्रेम की लंबे अंतराल के बाद एक प्रणय कहानी फिर याद आई। अब भी उतनी ही असहिष्णु, अव्यक्त अल्पजीवी …
तुम हो, तुम्हारी याद है - कविता - प्रवीन 'पथिक'
तुम हो, तुम्हारी याद है और क्या चाहिए! दिल में एक जज़्बात है, और क्या चाहिए! हृदय में उमड़ता सागर है, बहते ख़्वाबों के झरने हैं। तुझे …
तोतली ज़ुबान वाला हर्ष - संस्मरण - डॉ॰ शिवम् तिवारी
"तातू, तातू, आ गए मेरे तातू" सर पर बेतरतीब बिखरे बाल, बदन पर पुरानी टी-शर्ट एवं अधफटी नेकर पहने महज़ 5 बरस का बालक हर्ष मुझे …
प्रेम और उसकी यादें - कविता - मयंक मिश्र
प्रेम... वही जिसके सिर्फ़ उदाहरण होते है, क्योंकि प्रेम की नहीं होती हैं परिभाषाएँ! जैसे, मेंढकों को बोलने के लिए ज़रूरी होती है बरसात…
तब याद तुम्हारी आई - कविता - ज्योत्स्ना मिश्रा 'सना'
जब झूमी कहीं बयार घटाएँ नभ में छाईं, तब याद तुम्हारी आई निंदिया की गोदी में सोई स्वप्नो से नाता जोड़ लिया, स्मृतियाँ जागी अंतर की आशा …
यादें - कविता - जितेंद्र रघुवंशी 'चाँद'
है तू नाराज़ तो ये भी सही है। इसी बहाने यादें तेरी आई, यादें जो कई है।। लेकिन, बताया नहीं क्यों नाराज़ है, ये भी अच्छा है, छिपा रहे राज़ …
बड़ा मज़ा आता था - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव
बचपन के दिनों में दोस्तों के साथ मिलकर शरारतों को करने में बड़ा मज़ा आता था। बचपन के खेल-खेल में अपने दोस्त की ढीली पैंट नीचे निपकाने …