किसी पुस्तक के किसी पन्ने पर,
दिखाई दिया,
एक कतरन नुमा काग़ज़।
लिखा था कल क्या क्या,
सामान लाना है,
घर चलाने को।
शायद जेब इसकी इजाज़त नहीं दे पाई।
वह कतरन पन्नों में दबी रह गई।
बरसों बाद,
आज पुस्तक पर,
धूल देख साफ़ करते हुए,
वह कतरन,
वर्तमान की तरह अतीत से आई।
सारे शब्द धूमिल से हो गए थे।
पढ़ने योग्य थे।
जैसी स्थिति अब है,
वैसी ही तब थी।
बस इतना ही अच्छा है,
अधिक बिगड़ी नहीं।
हेमन्त कुमार शर्मा - कोना, नानकपुर (हरियाणा)