बचपन के दिन - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला

बचपन के दिन - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला | Hindi Geet - Bachapan Ke Din - Sushma Dixit Shukla | बचपन के दिन पर गीत / कविता
कितने सुंदर, बेमिसाल थे,
छुटपन के दिन बचपन के दिन,
रह ना पाते सखियों के बिन।
रह ना पाते सखियों के बिन।

खेलकूद थे मस्ती थी,
काग़ज़ वाली कश्ती थी।
ख़ुशियों की कोई बस्ती थी,
दुनिया कितनी सस्ती थी।

त्यौहारों की राह देखते,
दिन गिन-गिन दिन गिन-गिन।
रह ना पाते सखियों के बिन,
कितने सुंदर, बेमिसाल थे,
बचपन के दिन छुटपन के दिन।

सपनो में परियों से मिलते,
नदियों संग बह-बह जाते थे।
गुड़ियों के घर रोज़ बनाते,
चिड़ियों संग उड़-उड़ जाते थे।

भाई बहन संग झूठे झगड़े,
अम्मा के दुलार के दिन।
बापू के अति प्यार के दिन
कितने सुंदर, बेमिसाल थे,
छुटपन के दिन बचपन के दिन।
रह ना पाते सखियों के बिन।

आसमान को छूने का मन,
दुनिया थी मुठ्ठी में जैसे।
कोई फ़िक्र न कोई चिंता,
ख़ुशियों के थे रंग कैसे।

पतझड़ नहीं बहार के दिन,
बचपन के संसार के दिन।
लाजबाब थे, बेमिसाल थे,
छुटपन के दिन बचपन के दिन।
रह ना पाते सखियों के बिन।


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos