सूर्य प्रकाश शर्मा - आगरा (उत्तर प्रदेश)
प्रेम स्मृति - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा
गुरुवार, अगस्त 29, 2024
मेरी स्मृतियों में हो तुम,
मैं तुम्हें भुला दूँगा कैसे?
अपनी यादों की तिलांजलि,
बोलो आख़िर दूँगा कैसे?
जो साथ तुम्हारे बीते थे,
वो पल अब भी हैं याद मुझे,
तेरे मेरे जो बीच हुए थे,
मौन-मौन संवाद, मुझे।
मेरे जीवन के संग्रह में,
वो कविता थी सबसे महान,
जिसको संगीत बनाया था–
तुमने दी उसको मधुर तान।
स्मृतियों की रेखाओं में से
कुछ रेखा हट जाती हैं।
पर कुछ रेखाएँ ऐसी हैं,
जो उभर-उभर फिर आती हैं।
तुम भी वैसी ही रेखा हो,
जो अमिट और बलशाली है।
लेकिन उस रेखा की आगे वाली
पंक्ति अब खाली है॥
अब नहीं बचा है कुछ भी तो,
अपना सब कुछ तो बीत गया।
जबसे वो चला गया तबसे
लगता मधुमय संगीत गया।
आख़िर मेरे कारण ही सब,
पीछे पीछे ही छूट गया।
जो कभी बनाया था हमने,
लगता है, वो घर, टूट गया।
मैं रहा निरर्थक, बेबस-सा,
मैंने ही बंधन तोड़ दिया।
मैंने ही तुमको बीच भँवर में,
निस्सहाय सा छोड़ दिया।
फिर निष्ठुर-सा बनकर मैं,
चलता ही चला गया पथ पर।
तुमको मैं छोड़ युद्घ भूमि में
जा बैठा शांति से रथ पर॥
तुम छूट गईं, सब छूट गया,
वो चीज़ नहीं फिर से आईं,
माना कुछ बचा नहीं था पर–
यादें तो नहीं छूट पाईं॥
वो स्मृति फिर से आज मुझे,
रह रहकर के तड़पातीं हैं।
झकझोर डालतीं हैं मुझको,
आँखों से अश्रु बहाती हैं॥
लेकिन फिर भी मैं यादों से,
बिल्कुल भी घृणा नहीं करता।
मैं अश्रु बहा लेने से तो
बिल्कुल भी डरा नहीं करता॥
कुछ और नहीं, बस यादें हैं,
वो भी विनष्ट हो जाएँगी।
तो फिर कैसे वो मुझे तुम्हारी
मधुर याद दिलवाएँगी॥
सब नष्ट हो गया, तो क्या है,
स्मृतियों को तो रहने दो।
मिलने का सुख ना मिल पाया,
बिछुड़न का दुःख ही सहने दो॥
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