संदेश
माँ तू हम सबको प्यारी है - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
तूने जन्म दे पालन-पोषण किया, माँ हम तेरे अनमोल कर्ज़दारी है। तेरी ही बदोलत ख़ुशियाँ हमारी, माँ तू हम सबको प्यारी है। तू ममता की महा खान,…
पंखाचल - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
दबा चोंचभर मिटट्टी लाती, दीवारों में वह चिपकाती। बच्चों के आवास के लिए, एक पक्का घोंसला बनाती।। घूम-घूम कर घर-घर दिन भर, चुन-चुन कर …
आँचल की छाँव - कविता - रमाकांत सोनी
वात्सल्य का उमड़ता सिंधु माँ के आँचल की छाँव। सुख का सागर बरसता जो माँ के छू लेता पाँव।। तेरे आशीष में जीवन है, चरणों में चारो धाम माँ…
असहाय माँ - कविता - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
एक आह उठी नीरस मन में, जब देखी उसकी तन्हाई। वह माता थी जिन बच्चों की, क्यों उसके साथ नहीं भाई? एकाकी बेबस चिर गुमसुम, किस कारण से थी…
माँ - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
चंदन जैसी माँ तेरी ममता, तेरी मिसाल कहाँ दूँ माँ। जनम मिले गर फिर धरती पर, तेरा ही लाल बनूँगा माँ। तूने कितनी रातें वारी, जाग जाग कर म…
सृष्टि मूल है माँ - कविता - विनय "विनम्र"
माँ! तुम हो, तो मैं हूँ। तुम सदा अभय, मैं भय हूँ। माँ! तुम हो, तो मैं हूँ।। तुम नीर क्षीर अमृत की सरिता, मैं अहं भरा विष पय हूँ। माँ! …
गाँव का घर - कविता - गुड़िया सिंह
दरक गई है दीवारे, छत उसकी अब टपकती है, वो गाँव वाला घर तेरा, जिसमें अकेली "माँ" रहती है। बचपन मे जहाँ बैठकर, तू घण्टो खेला क…
तुम और अपना गाँव - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
कमला चाची दरवाजे पर टुकटुकी लगाए आज सुबह से अपने परदेसी बेटे जीवन की अनवरत प्रतीक्षा कर रही थीं, होली का दिन जो आ गया था। मगर बेरोज़गार…
पहली इबरत माँ होती है - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
बेज़ुबाँ की मुसल्लत, ज़ुबाँ होती हैं। इस जहां में एक औरत माँ होती हैं। बेहिस्सो हरकत में बन हिफाज़ते जां, सरीय तासीर की बुरुदत माँ होती …
माँ - कविता - शमा परवीन
"माँ" ममता, प्यार, दुलार हैं, जीवन की सच्ची सलाहकार हैं। मातृत्व शक्ति से वाक़िफ़ नहीं जो, उसका जीवन में कहा उद्धार हैं। प्यार…
माँ की ममता - कविता - पुनेश समदर्शी
माँ की ममता जगत निराली, माँ के बिन सब खाली-खाली। अजब निराली छाया है, माँ का हाथ हो सिर पर जिसके, अनहोनी सब दूर को खिसके। सुखी वही कह…
माँ का पल्लू - कविता - प्रीति बौद्ध
माँ तेरे पल्लू का जवाब नहीं, लगता है कमाल। मैं पानी की बून्द और तेरा ह्रदय है विशाल।। तेरे पैरों की जुती हूँ माँ, तेरे क़दमों में ही रह…
मैं ममता हूँ (भाग ६, अंतिम भाग) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(६) मेरे ही बच्चे फसल खेत में बोते हैं। ईंटा-पत्थर कोमल कँधों पर ढोते हैं। आठों घण्टे खटते खूब कारखानों में। नित्य बहाते सीकर कोयला-खद…
मैं ममता हूँ (भाग ५) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(५) मैं मातु यशोदा शकुंतला यशोधरा हूँ। कौशल्या मायादेवी त्रिशला तारा हूँ। महा समर लक्ष्मीबाई बन के करती हूँ। मैं बन कल्पना उड़ान गगन पे…
मैं ममता हूँ (भाग ४) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(४) कहती है ममता अपनी कथा निराली है। यूँ मन से जल्दी वह न निकलने वाली है। समय मिले तो इतिहास कभी खंगालो तुम। हुई नहीं किसी काल में भी …
मैं ममता हूँ (भाग ३) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(३) हर युग में मैं अवतरण धरा पे लेती हूँ। मातृ रूप धारण कर कर्त्तव्य निभाती हूँ। मैं रचती हूँ नव कथा-कहानी इस जग में, स्नेह-दीप बनकर ज…
मैं ममता हूँ (भाग २) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२) ममता कहती मैं नारी हूँ मातृ-स्वरूपा। हूँ परिभाषा हीन सुसज्जित शब्द अनूपा। मैं हूँ संतति की अंतस संस्कार वाहिनी। वात्सल्य स्नेह अरु…
मैं ममता हूँ (भाग १) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१) मम तजना आसान नहीं है कहती ममता। मम का करे निदान नहीं मानव में क्षमता। मम का बंधन डोर काटना अतिशय भारी। मम ही मम चहुँ ओर बँधे मम से…
माँ हूँ - कविता - राम प्रसाद आर्य 'रमेश'
सर्दी सता रही है बेटा, आ, आँचल में छुप जा। माँ हूँ, रो मत, ले तन ढक ले, अब तो तू चुप जा।। एक छोर निज सर ढक लूँ, दूजे तेरे तन को। मा…
माँ - कविता - मंजु यादव "ग्रामीण"
आज कलम कुछ आतुर सी है, माँ क्या है बतलाने को। अक्षर के कुछ मोती लायी, कागज पर बिखराने को। अंतःकरण मचल उठा है, मै भी बाहर आ जाऊँ। श्रध्…
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