माँ की ममता - कविता - पुनेश समदर्शी

माँ की ममता जगत निराली, 
माँ के बिन सब खाली-खाली।
अजब निराली छाया है,
माँ का हाथ हो सिर पर जिसके, 
अनहोनी सब दूर को खिसके।
सुखी वही कहलाया है।।
माँ की ममता जगत...
खुशियाँ मिलतीं मुझको सारी, 
माँ की बातें बहुत ही प्यारी।
मुझको संसार दिखाया है।।
माँ की ममता जगत...
माँ की ममता का मोल न कोई, 
माँ से मधुर बोल न कोई।
माँ ने ही आँचल में सुलाया है।।
माँ की ममता जगत...
नौ माह रखती गर्भ में, कष्ट बहुत ही सहती है।
घर के काज करती सब ही, किसी से कुछ न कहती है।।
माँ ही नींव मेरी है यारो, जिसने चलना सिखाया है।।
माँ की ममता जगत...

पुनेश समदर्शी - मारहरा, एटा (उत्तर प्रदेश)

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