पंखाचल - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"

दबा चोंचभर मिटट्टी लाती,
दीवारों में वह चिपकाती। 
बच्चों के आवास के लिए, 
एक पक्का घोंसला बनाती।।

घूम-घूम कर घर-घर दिन भर,
चुन-चुन कर वह दाना लाती।
बारी-बारी से बच्चों को,
प्यार से वह भोजन है कराती।। 

चोंच में भर-भर पानी लाती, 
बच्चों की वह प्यास बुझाती। 
चों-चों, चों-चों गीत सुनाकर,
पंखाचल में उन्हें सुलाती।।

अपने संग-संग चलना, उड़ना,
और बोलना उन्हें सिखाती।
पीठ में रखती घुमा-घुमा कर,
जग की जग-मग उन्हें दिखाती।। 

फुर्र-फुर्र उड़ आती-जाती, 
ताल, थाल, जल रोज़ नहाती। 
कभी-कभी बच्चों को संग ले, 
जाकर उनको भी नहलाती।।

माँ है वही, बाप वही है,
चूँ-चूँ कर उनको समझाती।
उन्हें खिलाती, तब ख़ुद खाती,
वात्सल्य उन पर है लुटाती।। 

कभी कोई कष्ट, समस्या आती, 
पंखाचल में उन्हें छुपाती। 
लड़-लड़ मर जाती लेकिन, 
बच्चों की वह जान बचाती।।

चोंच फेर सर पर सहलाती,
चों-चों गा-गा, मन बहलाती।
जननी, पालक, शिक्षक, रक्षक,
तब तो वह माँ है कहलाती।।

राम प्रसाद आर्य "रमेश" - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)

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