मैं ममता हूँ (भाग २) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(२)
ममता कहती मैं नारी हूँ मातृ-स्वरूपा।
हूँ परिभाषा हीन सुसज्जित शब्द अनूपा।
मैं हूँ संतति की अंतस संस्कार वाहिनी।
वात्सल्य स्नेह अरु शीतल छाया प्रदायिनी।
अलंकार सदृश हिया में सजती नारी की।
नेह-मंजरी हूँ अंतःकरण फुलवारी की।
मैं अंतस मन की भाव-धार में बहती हूँ।
अति सहनशील हूँ शोक-ताप नित सहती हूँ।
मैं बँधी हुई हूँ इस धरती के कण-कण से।
मैं जुड़ी हुई हूँ जीव-जगत के प्रांगण से।
राजा हो या रंक सभी हैं मेरे अपने।
मैं सतत सँजोती आँखों में स्वर्णिम सपने।
मैं हार-जीत रह-रह स्वीकारा करती हूँ।
आशा घट दिन-रैन हृदय में भरती हूँ।
मैं शक्ति-स्वरूपा बन दर्शाती क्षमता हूँ।
सम्पूर्ण ब्रह्म ही मेरा है- 'मैं ममता हूँ'।।

डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)

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