सृष्टि मूल है माँ - कविता - विनय "विनम्र"

माँ! तुम हो, तो मैं हूँ।
तुम सदा अभय,
मैं भय हूँ।
माँ! तुम हो, तो मैं हूँ।।

तुम नीर क्षीर
अमृत की सरिता,
मैं अहं भरा विष पय हूँ।
माँ! तुम हो, तो मैं हूँ।।

तुम उन्नत हिम शिखर
स्वर्ग मय,
मैं वृहद घाटी का क्षय हूँ।
माँ! तुम हो, तो मैं हूँ।।

तुम निर्लेप सदा अंबर सी,
मैं अंधकार का आश्रय हूँ।
माँ! तुम हो, तो मैं हूँ।।

तुम प्रथम रुदन
तुम प्रथम स्वांस,
मैं जीवन का परलय हूँ।
माँ! तुम हो, तो मैं हूँ।।

तुम प्रथम बूँद हो अमृतमय,
मैं तो केवल निर्दय हूँ।
माँ! तुम हो, तो मैं हूँ।।

तुम जीवन संगीत सरल हो,
मैं तो केवल लय हूँ।
माँ! तुम हो, तो मैं हूँ।।

विनय "विनम्र" - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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