पहली इबरत माँ होती है - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"

बेज़ुबाँ की मुसल्लत, ज़ुबाँ होती हैं।
इस जहां में एक औरत माँ होती हैं।

बेहिस्सो हरकत में बन हिफाज़ते जां,
सरीय तासीर की बुरुदत माँ होती है।

ख़ुद का दर्द भूलाकर शब रोज़ महव,
बरअक्स हालत में ज़रूरत माँ होती है।

दिल में लिए मुसीबत-ज़दा की तड़प,
दिलेराना खैर ख़िदमत माँ होती है।

रात जाग कर, लोरी गाए तरन्नुम में,
चैन व सुकून की रहमत माँ होती है।

खुशआयंद, मादराना जोश लेकर,
हर हाल में उठाए ज़हमत माँ होती है।

एक अनजाना सच को जान तो लीजिए,
ज़िन्दगी की पहली इबरत माँ होती है।

महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)

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