वात्सल्य का उमड़ता सिंधु
माँ के आँचल की छाँव।
सुख का सागर बरसता
जो माँ के छू लेता पाँव।।
तेरे आशीष में जीवन है,
चरणों में चारो धाम माँ।
सारी दुनिया फिरूँ भटकता,
गोद में तेरे आराम माँ।।
मेरे हर सुख दुख का
पहले से एहसास माँ।
संस्कार दे भाग्य बनाया,
तुम कितनी हो ख़ास माँ।।
कैसे करूँ उपेक्षा तेरी,
तूम मेरा विश्वास माँ।
जीवन का दिव्य ज्ञान,
अलौकिक प्रकाश माँ।।
रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)