मैं ममता हूँ (भाग ५) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(५)
मैं मातु यशोदा शकुंतला यशोधरा हूँ।
कौशल्या मायादेवी त्रिशला तारा हूँ।
महा समर लक्ष्मीबाई बन के करती हूँ।
मैं बन कल्पना उड़ान गगन पे भरती हूँ।
हूँ जीजाबाई वीर शिवाजी की माता।
मैं राणा प्रताप की जननी हूँ जयवंता।
मैं संतानों को समुचित पाठ पढ़ाती हूँ।
निज राष्ट्र हेतु मर मिटने को सिखलाती हूँ।
सरहद पर नित मेरे बच्चें ही जाते हैं।
लिपट तिरंगा जब घर में वापस आते हैं।
जयहिंद! बोल कर मैं ही स्वागत करती हूँ।
उनके ताबूत श्वेत फूलों से भरती हूँ।
मम विह्वल मन को खुद ही मैं समझाती हूँ।
वीर पुत्र के क्षत-विक्षत तन को सहलाती हूँ।
उस पल यूँ लगता मैं ही भारत माता हूँ।
सम्पूर्ण ब्रह्म ही मेरा है- 'मैं ममता हूँ '।।

डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)

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