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मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २९) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२९) बोल पड़े जगपाल, किरण पट खोले अपना। गुज़र गए जयपाल, सँजोकर मन में सपना। आंदोलन की डोर, एन.ई.होरो पकड़े। सक्रिय रह पुरजोर, अलग राज्य ह…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २८) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२८) भारत देश विकास, करे सबकी थी आशा। छाया था उल्लास, बीच घनघोर निराशा। आदिवासी सदान, हुए अंदर से जर्जर। भूमि सुधार विधान, ग्रहण ब…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २७) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२७) पार्टी पदेन सचिव, बने थे एस. के. बागे। हक से सत्रह बार, झारखण्ड राज्य थे मांगे। लेकिन बारम्बार, उठापटकी थी जारी। पार्टी किंचि…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २६) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२६) झारखण्ड के लाल, मरंग गोमके जननायक। माँगे थे अधिकार, आदिवासी परिचायक। महासभा का नाम, बदल इतिहास रचाए। आदिवासी के पक्ष, सभा में…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २५) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२५) भारत हुआ आजाद, मिहिर मुस्काकर बोले। पल दो पल के बाद, किरण पट अपना खोले। बोले ततपश्चात, हुए मन ही मन गर्वित। झूम उठा था प्रांत…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २४) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२४) आंदोलन तत्काल, रंग लाया अतिकारी। प्रांत हुए उत्ताल, लगी होने बमबारी। हिन्दू मुस्लिम सिक्ख, आदिवासी ईसाई। भेदभाव सब भूल, बने आ…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २३) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२३) मत हो सखी अधीर, प्रभाकर हँस कर बोले। हुए तनिक गंभीर, किरण पट अपना खोले। जयहिंद सिंहनाद, किए नेताजी आकर। श्रमिकों को आबाद, किए थे …
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २२) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२२) चंपारण विद्रोह, रहा था जब तक जारी। गाँधी राँची शहर, पधारे बारी-बारी। आंदोलन पश्चात, पुनः राँची में आए। टाना भगतों साथ, विदेशी…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २१) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२१) बीती काली रात, गए छुप चाँद-सितारे। लेकर नवल प्रभात! गगन पे मिहिर पधारे। बोल पड़े इसबार, स्वयं लब अपना खोले। स्वाधीनता बयार, दे…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २०) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२०) हे कृपालु जगपाल! किरण पट अपना खोलो। बँटवारा बंगाल, प्रभावी क्यों था बोलो? क्यों बंगीय समाज, उग्र हो गई भयानक? हो भारत आजाद, म…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १९) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१९) शोषण अत्याचार, गरीबी से अभिशापित। बेगारी बेकार, प्रताड़ित औ विस्थापित। कुरीतियों से ग्रस्त, आदिवासी नर-नारी। अब भी रहते त्रस्त…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १८) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१८) मिली नहीं जमीन! योजना रही विवादित। आशा हुई मलीन, हुई रैयतें प्रभावित। मिशनरियों पर आस, लगाई फिर से रैयत। असफल रहा प्रयास, लाख…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १७) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१७) बोले प्रिय दिनमान, मौन यूँ रह के पल भर। क्रांति हुई अवसान, यहाँ न काल-कालान्तर। ईस्ट इंडिया ताज, हटी भारत माटी से। चल पड़ी ब्र…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १६) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१६) हे प्रभु दीनानाथ, नमन मेरा स्वीकारो। गौरवमयी प्रगाथ, सुनाकर हमें उबारो। वीर उमराँव सिंह, खटंगा पातर वासी। शेख भिखारी संग, किस…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १५) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१५) रात गई थी बीत, क्षितिज पे दिनकर आए। कोयल गायी गीत, फूल खिलकर मुस्काए। झारखण्ड जोहार! बोले ज्यों बाल दिवाकर। प्रश्नों की बौछार…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १४) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१४) संथाली विद्रोह, प्रांत में क्यों था जारी? क्या दामिन-ई-कोह, कचहरी थी सरकारी? न्याय हेतु संथाल, किया करते तय दूरी। बतलाओ जगपाल…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १३) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१३) मुण्डा भूमिज कोल, प्रबल विद्रोह किए क्यों? पंचायती विधान, फिरंगी बदल दिए क्यों? क्यों हित के विपरीत, बनी कानून बताओ। बोलो प्र…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १२) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१२) अंग्रेजों के संग, मिले थे कई प्रशासक फैला था आतंक, क्षेत्र में महा भयानक। पंचेत वीरभूम, रामगढ़ के बटमारें। छेड़ दिए संग्राम, अध…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ११) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(११) तिलका ने विद्रोह, किया क्यों हमें बताओ? राजमहल भू छोह, कथा की सार सुनाओ। पहाड़िया संथाल, दमन की राम कहानी। फूट नीति संजाल, प्रथा क…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १०) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१०) बता मिहिर! तत्काल, पलामू राज कहानी। गद्दी हेतु बवाल, मचा था क्यों बेमानी? अंग्रेजों से हाथ, मिलाया किसने बोलो? चेरो सेना साथ,…