मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १३) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(१३)
मुण्डा भूमिज कोल, प्रबल विद्रोह किए क्यों?
पंचायती विधान, फिरंगी बदल दिए क्यों?
क्यों हित के विपरीत, बनी कानून बताओ।
बोलो प्रभु आदित्य! सविस्तृत हाल सुनाओ।


बोले प्रभु आदित्य, मौन रह कर के दो पल।
अंग्रेजों के कृत्य, मचा दी भीषण हलचल।
वन प्रवेश पर रोक, लगी आदिवासियों की।
भू-विकास अवरोध, चाह थी फिरंगियों की।।


महँगी हड़ियाँ पेय, पड़ी थी अतिशय भारी।
अति अल्प मानदेय, रही कृषकों की भारी।
शोषक ठेकेदार, पाप से थे दम भरते।
अतिशय दुर्व्यवहार, नारियों से थे करते।।


शोषण अत्याचार, उपेक्षा भ्रष्टाचारी।
उत्पीड़न व्यभिचार, बढ़ी थी भू पर भारी।
कोल किए संग्राम, विरोधी स्वर लहराया।
कह कर यूँ दिनमान, पछिम में जाकर छाया।


तुम देखे परिणाम, सनेत्रों से हे दिनकर!
करते नित संग्राम, भूमि-पुत्रों को दिनभर।
अतीत किरण पखार, आज जग को दिखलाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।


डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)


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