मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १६) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(१६)
हे प्रभु दीनानाथ, नमन मेरा स्वीकारो।
गौरवमयी प्रगाथ, सुनाकर हमें उबारो।
वीर उमराँव सिंह, खटंगा पातर वासी।
शेख भिखारी संग, किसे थे घेरे घासी?


मार्शल लॉ तत्काल, हुआ क्यों लागू बोलो?
गए काल के गाल, समा कितने जन बोलो।
नेता गणपत राय, बने थे क्यों विद्रोही?
बने सिपहसालार, वीर विश्वनाथ शाही।।


माँगी क्यों तत्काल, क्षमादान महारानी?
धधकी क्यों थी ज्वाल, धरा पर वही पुरानी।
जयमंगल के संग, चढ़े नादिर क्यों फाँसी?
शेखभिखारी संग, चढ़े क्यों फंदे घासी।।


मिली सजा-ए-मौत, राय गणपत को कब थी?
विश्वनाथ पर फंद, गले डाली किसने थी?
क्यों नीलांबर संग, चढ़े पीतांबर फाँसी?
लोग हुए क्यों दंग, देख कर खेल सियासी?


क्या हुआ तुम्हें मिहिर! मौन तुम क्यों हो बोलो?
पोंछ नयन से नीर, किरण पट अपना खोलो।
वीरों की जयगान, हमें गाना सिखलाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।


डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)


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