मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग १५) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(१५)
रात गई थी बीत, क्षितिज पे दिनकर आए।
कोयल गायी गीत, फूल खिलकर मुस्काए।
झारखण्ड जोहार! बोले ज्यों बाल दिवाकर।
प्रश्नों की बौछार, लगा दी ममता हँस कर।।


हे प्रियवर मार्तण्ड! किरण पट अपना खोलो।
अथ कथा झारखण्ड, आज विस्तारित बोलो।
कब सैनिक विद्रोह, यहाँ पे पंख पसारा।
क्या यह जन विद्रोह, नाम से गया पुकारा?


बोले प्रभु मार्तण्ड, याद कर बात पुरानी।
तत्काल झारखण्ड, कथा जानी-पहचानी।
महिमामण्डित साल, अठारह सौ संतावन।
था मच गया बवाल, गोलियाँ चली दनादन।।


कुँवर सिंह महत, बजा दी जब रणभेरी।
सूचना मिली सतत, हुई न पल भर देरी।
क्षेत्र हजारीबाग, दिवस था तीस जुलाई।
वीर गए थे जाग, तबाही खूब मचाई।।


आगे की हर बात, बताऊँगा मैं विस्तृत।
लेकर नवल प्रभात, पधारूँगा मैं निश्चित।
वीरों का बलिदान, कथा भी बतलाऊँगा।
सबके प्रति सम्मान, गर्व से जतलाऊँगा।।


जाओ अवश्य मिहिर! शुभेच्छा लेकर जाओ।
अवसान करो तिमिर,सवेरा लेकर आओ।
बिसरो मत करतार! वायदा करके जाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।


डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)


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