मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २७) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(२७)
पार्टी पदेन सचिव, बने थे एस. के. बागे।
हक से सत्रह बार, झारखण्ड राज्य थे मांगे।
लेकिन बारम्बार, उठापटकी थी जारी।
पार्टी किंचित बार, चुनावों में थी हारी।।


ढूंढ़ रहे थे राह, अनवरत राज-दुलारे।
अलग राज्य अभियान, चलाकर साँझ-सकारे।
कई संगठन साथ, चलाए थे आंदोलन।
जीत न आई हाथ, चली आई थी अड़चन।।


किंतु हार स्वीकार, किए न आदिवासी जन।
संघर्ष लगातार, रही जारी सह तन-मन।
परंपरा संस्कार, पर्व संस्कृति औ भाषा।
होवे अंगीकार, सभी की थी अभिलाषा।।


फिर क्या हुआ पतंग? कथा आगे की बोलो।
झारखण्ड अध्याय, सतत आगे की खोलो।
तुम साक्षी करतार, धर्म बेहिचक निभाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।


डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)


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