मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २४) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(२४)
आंदोलन तत्काल, रंग लाया अतिकारी।
प्रांत हुए उत्ताल, लगी होने बमबारी।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख, आदिवासी ईसाई।
भेदभाव सब भूल, बने आपस में भाई।।


शुरू किए संग्राम, कदम से कदम मिलाकर।
चले सहर औ शाम, क्रांतिपथ अलख जगाकर।
नेता वीर सुभाष, ग़ज़ब थे जादू ढाए।
कई दफ़े धनबाद, क्षेत्र लुकछुप के आए।।


जासूसों से आँख, बचाकर गोमो भागे।
रूपरेख तैयार, किए दिन-रैना जागे।
पकड़ कालका मेल, विजय पथ स्वयं बनाए।
खत्म हुई फिर खेल, कभी न लौट के आए।।


थमी नहीं थी शोर, प्रांत में आजादी की।
आंदोलन घनघोर, चल रहा था दिन-राती।
'भारत छोड़ो' ब्रिटिश, प्रांत वासी हुंकारे।
पशुराज शेर सरिष, गीदड़ों को ललकारे।।


नेता जयप्रकाश, कृष्णवल्लभ पकड़ाए।
सजग सुखलाल सिंह, जेल की रोटी खाए।
गए जेल तत्काल, राम नारायण बरबस।
वाचस्पति को जेल, भेज दम लिए प्रशासक।।


तुम वंदे मातरम, कहे तत्काल प्रभाकर।
वीरों के गुणगान, किए थे शीश झुकाकर।
जय वंदे मातरम, हमें कहना सिखलाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।


डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)


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