मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २६) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(२६)
झारखण्ड के लाल, मरंग गोमके जननायक।
माँगे थे अधिकार, आदिवासी परिचायक।
महासभा का नाम, बदल इतिहास रचाए।
आदिवासी के पक्ष, सभा में बात बढ़ाए।।


बनी यथा तत्काल, नयी झारखण्ड पार्टी।
आल्हादित प्रबल, हुई तब पावन माटी।
बोल पड़े जयपाल, मसौदे में हो मुखरित।
आदिवासी समुदाय, रहा हर काल उपेक्षित।।


ध्यान तनिक सरकार, आदिवासी जन पर दो।
मूलभूत अधिकार, नीर भू जंगल दे दो।
किंतु हाय दुर्भाग्य, प्रबलतम था गहराया।
झारखण्ड पार्टी विलय, हुई दुर्दिन था आया।।


सामान्य मोह जाल, पड़ी नायक पर भारी।
कालांतर ली थाम, पुरातन स्व दल न्यारी।
आगे की कथसार, दिवाकर हमें बताओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।


डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)


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