मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २३) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(२३)
मत हो सखी अधीर, प्रभाकर हँस कर बोले।
हुए तनिक गंभीर, किरण पट अपना खोले।
जयहिंद सिंहनाद, किए नेताजी आकर।
श्रमिकों को आबाद, किए थे नेह जताकर।।

कांग्रेसी गण सदल, प्रांत में हुए उपस्थित।
हुई सभा अति भव्य, रामगढ़ में आयोजित।
पहुँचे वीर सुभाष, रामगढ़ की माटी पे।
देख हुए थे दंग, वहाँ की परिपाटी में।।

सत्याग्रह की ढोल, पड़ी कानों को भारी।
बोले कड़वी बोल, वीर सुभाष अतिकारी। 
मन में ले संकल्प, संगठन अलग बनाए।
देशभक्तों के संग, प्रांत में पाँव जमाए।।

'दिल्ली चलो' पुकार, चहुँ ओर जा टकरायी।
अंग्रेजी सरकार, मन ही मन थी घबरायी।
नेता वीर सुभाष, नजरबंद हुए आखिर।
करते रहे प्रयास, क्रांति वीरों के खातिर।।

फिर क्या हुआ कृपालु? सविस्तार हमें बताओ।
झारखण्ड का हाल, बयाँ करते ही जाओ।
स्वाधीनता बयार, बही कब तक बतलाओ?
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।

डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)

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