मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २९) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(२९)
बोल पड़े जगपाल, किरण पट खोले अपना।
गुज़र गए जयपाल, सँजोकर मन में सपना।
आंदोलन की डोर, एन.ई.होरो पकड़े।
सक्रिय रह पुरजोर, अलग राज्य हेतु अकड़े।।

रण विजय शाहदेव, पकड़ रखे थे झण्डा।
किए तेज आवाज़, श्री रामदयाल मुण्डा।
भर कर के हुंकार, बागुन सुंब्रई बरबस।
जोड़ रहे थे तार, अलग राज्य हेतु भरसक।।

प्रयास किए अपार, यथा एंथोनी मुर्मू।
दल की लगी कतार, बिखेरी मगर न खुशबू।
लाल-हरा इक संग, पताका कर में लेकर।
खूब बिखेरे रंग, प्रांत के तीन-सुधाकर।।

गठन हुई तत्काल, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा।
चली शशक सम चाल, लगी होने अति चर्चा।
शिबू सोरेन संग, विनोद बिहारी महतो।
गरजे ए.के.राय, चिंघाड़े निर्मल महतो।।

भरे अमर कु.सिंह, जोश दल में अतिकारी।
किए प्रबल मदहोश, बी.पी.केशरी भारी।
शक्ति भरे तादाद, यथा शक्तिनाथ महतो।
दिए लोग आवाज़, अमरसिंह बेसरा को।।

नेताओ के संग, जुटी थी लाखों जनता।
अलग राज्य की माँग, प्रांत में पाई क्षमता।
नेता तीन महान, किये थे क्या बतलाओ?
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।

डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)

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