संदेश
हे तथागत ये बताओं - कविता - मयंक द्विवेदी
हे तथागत ये बताओ जीवन का क्या मर्म है? कैसे हो जीवन का उद्धार क्या संन्यास ही है मुक्ति का द्वार कैसे सम्भव है जन्म पर ना हर्ष हो? और …
जंगली मन - कविता - सुनीता प्रशांत
इन हरे भरे जंगली पेड़ों जैसे मैं भी हरी भरी हो जाऊँ मनचाहा आकार ले लूँ कितनी भी बढ़ जाऊँ फैल जाऊँ दूर-दूर तक या आकाश को छू जाऊँ रोकना…
फिर भी मुस्कुरा दिया - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
ग़म थे ज़माने भर के, फिर भी मुस्कुरा दिया। फूल होने का, फ़र्ज़ अदा किया। काग़ज़ और पैन का, समझोता टूटा। लिखता वो, काग़ज़ की नापसन्दगी का। चलती…
ख़ास - कविता - विनय विश्वा
मनुष्य गुणों से ही तो ख़ास होता है इसीलिए तो वह दिल के पास होता है। ईश्वर के अवतारी युग– त्रेता हो या द्वापर राम के ख़ास हनुमान कृष्ण के…
प्रेम - कविता - प्रेम ठक्कर
प्रेम नहीं सिमटता व्यक्ति में, सत्य है। प्रेम में विलीन होना निश्चित है, सत्य है। बीते कल की चिंताओं को भूलकर, उस प्रेम के समंदर में ग…
माँ कूष्मांडा - गीत - उमेश यादव
आदिस्वरुपा माँ कूष्मांडा, सृष्टि धारक पालक हो माता। रोग शोक का अंत करो माँ, सिंहवाहिनी भगवती माता॥ अष्टभुजा हे आदिशक्ति माँ, निज स्…
म्हारो नववर्ष आयो - गीत - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'
आयो रे आयो म्हारो शुभदिन आयो आयो रे आयो म्हारो नववर्ष आयो चैत्र नवरात्रि रो प्रथम दिवस आयो नव प्रभात नवरंग संग साथ लायो आयो रे आयो म…
बढ़ते रहो पथिक सदा - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
बढ़ते रहो पथिक सदा, धरि धीरज की डोर। स्नेह प्रेम ममता लिए, सबहिं रखो हृद कोर॥ सबहिं रखो हृद कोर, शान्ति संयम को धारो। सीखो सहना पीर, अ…
धरती का शृंगार मिटा है - कविता - राघवेंद्र सिंह
धधक उठी है ज्वालित धरती, जल थल अम्बर धधक उठा है। अंगारों की विष बूँदों से, प्रणय काल भी भभक उठा है। सूख गए हैं तृण-तृण सारे, दिग दिगंत…
ऋतुओं का महत्त्व - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सुष्मित कुसुमित प्रकृति यह, सुरभित जीवन लोक। सूरज चंदा अहर्निश, हरे तिमिर जग शोक॥ षड् ऋतुओं में प्रकृति सज, विविध रूप शृङ्गार। शीता…
तुम साथ हो जाना - कविता - मेहा अनमोल दुबे
जब रंग अपनी छटा बिखेरें, तुम साथ हो जाना, जब नील गगन सफ़ेद रंग सजाए, तुम साथ हो जाना, अमलतास जब सफ़ेद पीले गुच्छों को धरती पर बिखेरें, …
बिन तेल की बाती - कविता - मयंक द्विवेदी
देख बिन तेल की बाती को रजनी के अंधेरे भाग रहे देख धधकती ज्वाला में अपने सूत के अंग-अंग को आनंद की इस अनुभूति में प्राणों की थाती देकर…
पंछियों का दर्द - कविता - विपिन उपाध्याय
हम है पंछी हाय रे गर्मी आई रे गर्मी हम है आसमान में उड़ते स्वयं ही अपना दाना चुकते हाय रे गर्मी आई रे गर्मी सर्दी से हमें नही है दिक़्क़…
हो जाए - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी
हरारत हो ग़मों को भी ये अक्सर ख़ुशियाँ कहतीं हैं सजल आँखों की चाहत है उन्हें आराम हो जाए कहने-कहाने को पैदा हुई दुनिया गर हम जो कुछ कह द…
तोहरो रूप गढूँ मैं राधिका प्यारी - गीत - रोहित सैनी
छंद : राधिका छंद (13, 9 मात्रा पर विराम कुल चार पंक्ति (22मात्रा)) सुनो वृषभानु कुमारी, राधिका प्यारी तोहरो पंथ निहारी, अँखियाँ दुखारी…
दुख बदली - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
कभी शाम के सिरहाने खड़े सूरज को देखा है, ढलते माथे पर दुख बदली की रेखा है। स्मरण किया उन व्यर्थ हुए मूल्यों का, नदी के वेग, नदी की श्र…
ख़ामोशियाँ - कविता - आनन्द कुमार 'आनन्दम्'
ख़ामोशियाँ बहुत कुछ कहती हैं धीरे-से, हौले-से, चुपके-से ख़ामोशियाँ बहुत कुछ कहती हैं। मन की बाट जोहती हैं बेसुध-बेजान-बेबसी की साए में…
स्वाद मर जाता है - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
"फुल्की खा रही हूँ, बाद में करती हूँ बेटा फ़ोन! तुम भी खा लो कहीं" ऐसा कहते हुए समीर की माँ समीर का फ़ोन रख देतीं हैं।समीर को …
अभिशप्त इच्छाएँ - कविता - प्रवीन 'पथिक'
सब कुछ बिखर जाने के बाद; पथ-परिवर्तन के बाद; और स्मृतियों का गला घोंटने के बाद भी लगता है, कोई ऐसी बिंदु, कोई अवशेष, कोई रिक्तता छूट र…
स्वयं जलो - कविता - संजय राजभर 'समित'
जलो मत न जलाओ किसी को यदि जलाना है तो अंदर के विकारों को जलाओ अप्प दीपो भव: बनो कुंदन बनोगे आत्म चेतना जिस दिन जल गई फिर क्या जलना क्य…
होली - कविता - गणेश भारद्वाज
सद्भावों की माला होली, ख़ुशियों की है खाला होली। रंग बसे हैं रग-रग इसकी, रंगों की है बाला होली॥ मन के शिकवे दूर करे यह, मस्ती में फिर च…
अनुसरण कृष्ण का - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
शिथिल पाँव भोग के, विस्मरण भाव शोक के। कर्म से गति का अवसर, सम्यक ध्यान अहरहर। अनुसरण कृष्ण का। होली, अग्नि दहन ईर्ष्या का, उचित प्रयो…
चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर - गीत - सुशील शर्मा
चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर होली आई रे भैया मन मिश्री तन रंग लगाए नाचें साथी छम-छम-छम यौवन का उल्लास समेटे बजे मृदंगा डम-डम-डम प्रेम, मौ…
होली आई रे - गीत - अजय कुमार 'अजेय'
होली आई रे होली आई रे। मस्ती छाई रे मस्ती छाई रे। रंगों से भरी पिचकारी, छोरा-छोरी चोरी मारी। गुब्बारे में भर-भर रंग सारे, हुरियारे साध…
श्रद्धा भक्ति प्रेममय होली है - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
ब्रज होली है रंगों का त्यौहार राधा संग खेलें होली रे। गोरी राधा हृदय गोपाल मन माधव प्रिय हमजोली रे। मोहे रंग दे गुलाल गाल फागुनी होल…
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