ऋतुओं का महत्त्व - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

ऋतुओं का महत्त्व - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | Dohe - Rrituon Ka Mahattv, ऋतुओं पर दोहे
सुष्मित कुसुमित प्रकृति यह, सुरभित जीवन लोक। 
सूरज चंदा अहर्निश, हरे तिमिर जग शोक॥ 

षड् ऋतुओं में प्रकृति सज, विविध रूप शृङ्गार। 
शीताकुल खग पशु मनुज, दे वसन्त उपहार॥ 

मधुरिम वन मधु माधवी, मुकुलित चारु रसाल। 
फागुन के नवरंग से, सरसिज गाल गुलाल॥ 

कू कू करती कोकिला, पंचम स्वर मधु गान। 
नव प्रभात अरुणिम किरण, प्रमुदित जग इन्सान॥ 

नव विकास जग चहुँमुखी, प्रकृति ग्रीष्म धर रूप। 
औद्यौगिक अरु परिवहन, संचालन पा धूप॥ 

ग्रीष्मातप व्याकुल धरा, व्यथित लू अवसाद। 
श्रावण भादो रूप में, बारिस प्रकृति प्रसाद॥ 

हरियाली हर्षित धरा, फ़सल खेत खलिहान। 
पुष्पित नव पादप विपिन, हरित भरित उद्यान॥ 

कूप सरोवर सरित सब, भरे सलिल सब झील। 
जल प्रपात निर्झर धरा, सागर में तब्दील॥ 

जल यौवन बन षोडशी, नदियाँ नशा उफान। 
जल प्लावन में लीन सब, जन धन मिटे मकान॥ 

हेमन्त ऋतु मधुरागमन, हर आप्लावन वृष्टि। 
आश्विन कार्तिक मास शुभ, प्रकृति चारुतम सृष्टि॥ 

दुर्गाराधन पर्व शुभ, महाविजय त्यौहार। 
ख़ुशी दीप दीपावली, बनी प्रकृति उपहार॥ 

शरद्काल पुलकित कृषक, पकी फ़सल लखि खेत। 
मन्द-मन्द शीतल पवन, प्रवहित समतल रेत॥ 

अन्नपूर्ण करती प्रकृति, झूमे कृषक जहान। 
लदे फलों से विविध तरु, वन औषधि हिमवान॥ 

थिथुरन कम्पन रूप में, प्रकृति शिशिर अवतार। 
तुषार हार मुक्तामणि, तरुदल सज शृंगार॥ 

स्वच्छ प्रकृति कुसमित धरा, हो जीवन सुखधाम। 
संरक्षण पर्यावरण, लगा वृक्ष अभिराम॥ 


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