पंछियों का दर्द - कविता - विपिन उपाध्याय

पंछियों का दर्द - कविता - विपिन उपाध्याय | Birds Kavita - Panchhiyon Ka Dard - Vipin Upadhyay. Hindi Poem On Birds, पक्षी पर कविता
हम है पंछी
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी

हम है आसमान में उड़ते
स्वयं ही अपना दाना चुकते
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी

सर्दी से हमें नही है दिक़्क़त 
बरसात से हमें नहीं दिक़्क़त 
गर्मी मे है पानी की क़िल्लत
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी

हम है पंछी इंसान से कुछ नहीं चाहते
अपनी मर्ज़ी से स्वयं ही दाना चुगते
बस गर्मी मे आपसे यही आस है
हमारी भी बुझती नहीं प्यास है
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी

आप लोगो से इतना है कहना
घर की छतो पर रखो एक मटका
लगता है समय कुछ ही मिनट का
भरो उसमें रोज़ पानी
रखो छतो पर दाना और पानी
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी

हम है पक्षी हमें लगती प्यास है
आप लोगो से आस है
बाँधो हमारे लिए एक परिंडा
भरो उसमें दाना पानी
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी

बचालो पानी पीला कर हमारे प्राण है
हमारे बच्चो मे बसी हमारी जान है
दुआ देंगे आप लोगो को दिल से
हर गर्मी मे पानी पिलाओ हमे दिल से
हम है पक्षी हमारी भी आप लोगो से आस है
हमें भी लगती प्यास है
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी

विपिन उपाध्याय - भवानीमण्डी, झालावाड़ (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos