जब रंग अपनी छटा बिखेरें, तुम साथ हो जाना,
जब नील गगन सफ़ेद रंग सजाए, तुम साथ हो जाना,
अमलतास जब सफ़ेद पीले गुच्छों को धरती पर बिखेरें, तुम साथ हो जाना,
रहस्य से स्याह,
मखमल से महसुस होते रंग
अपनी ही अपनी कहते रंग
संचारी से स्थाई भाव बनाते रंग
सुर्ख़ लाल से हल्के गुलाबी तक स्वयं को रंगते ये रंग,
गहरी नीली रात से, सुनहरी सुबह तक के रंग
सुनहरे दिन से सिंदूरी शाम तक के रंग,
पतछड़ से बसंत तक के रंग
सब बिखर रहे है प्रकृति में, समेट लेना ये सारी सुन्दरता इस होली में,
ताकि विभाव अनुभाव में तुम्हारी निष्पत्ति और संचार हो,
जीवन के विस्मृत रंगो पर अधिकार हो,
स्वजल पथ न कभी मिले
विस्तार पर उन्मुक्त गगन मिले
सदृश्य चेतना अदृश्य तक स्वीकार हो,
निमित्त, नर्वाण वीतराग हो
प्रीत हो प्रभु हो और हर प्रार्थना स्वीकार हो।
मेहा अनमोल दुबे - उज्जैन (मध्य प्रदेश)