आनन्द कुमार 'आनन्दम्' - कुशहर, शिवहर (बिहार)
ख़ामोशियाँ - कविता - आनन्द कुमार 'आनन्दम्'
शुक्रवार, मार्च 29, 2024
ख़ामोशियाँ बहुत कुछ कहती हैं
धीरे-से, हौले-से, चुपके-से
ख़ामोशियाँ बहुत कुछ कहती हैं।
मन की बाट जोहती हैं
बेसुध-बेजान-बेबसी की साए में
ख़ामोशियाँ बहुत कुछ कहती हैं।
बेमन-बेमेल-बेवजह रिश्तों को बुनती हैं
टूटी हुईं धागों से मन को सिलती हैं
ख़ामोशियाँ बहुत कुछ कहती हैं।
बिन कहे सब कुछ समझती हैं
बेशुमार दर्द के आलम में जीती हैं
ख़ामोशियाँ बहुत कुछ कहती हैं।
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