स्वाद मर जाता है - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी

स्वाद मर जाता है - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी | Laghukatha - Swaad Mar Jaata Hai - Ishant Tripathi. स्वाद पर लघुकथा
"फुल्की खा रही हूँ, बाद में करती हूँ बेटा फ़ोन! तुम भी खा लो कहीं" ऐसा कहते हुए समीर की माँ समीर का फ़ोन रख देतीं हैं।समीर को काफ़ी दिन हुए फुल्की खाए। जब से वह बाहर आया है पढ़ने के सिलसिले से तो मानो छुट-पुट बाहर का खाना सब छूट गया। समीर अपने साथी सत्या को झट से लेकर पास नज़र आ रहे फुल्की वाले के पास जाकर दो प्लेट फुल्की खिलाने को कहता है। फुल्की की गिनती जब तक ख़त्म होने को आई तब तक समीर की हालत हिचकियों और खाँसी से बेहाल होने लगी।समीर ने एक सूखी फुल्की का आग्रह दुकानदार से किया पर फौरन दुकानदार ने मना कर दिया। समीर ने पैसे दिए और कुछ तारीफ़ों के साथ धन्यवाद कहते हुए सत्या के साथ घर को निकला। यह सब सत्या देखकर अचंभित हुआ। रास्ते बीच सत्या ने अपना आश्चर्य प्रकट किया कि मित्र! तुम उसकी प्रशंसा करके आए हो जबकि उसकी फुल्की कितनी घटिया थी, ऐसा क्यों?समीर मुस्कुराते हुए समझाता है सत्या को कि जो जीवन में सीख दे, उसे धन्यवाद तो कम से कम अवश्य कहना चाहिए। फुल्की खाने को मेरा मन कितना उतावला हो उठा अनायास; किंतु उस फुल्की वाले के फुल्कियों से मेरा मन इन फुल्की नाम के व्यंजन से सदा के लिए हट गया है। मेरा संकल्प और दृढ़ हो जाए इसलिए उसने सूखी फुल्की न देकर ठीक ही किया। इन फुल्कियों के प्रति अब मेरा स्वाद मर गया है। सत्या समीर की बातों को सुनकर अचानक जीवन के बहुत सारे रंगों को अपने सामने घूमते देखने लगा। जीवन में बहुत से इस प्रकार रिश्ते, वस्तुएँ, पद-प्रतिष्ठा इत्यादि पदार्थ होते हैं जिसको पाने के लिए हम लालायित रहते हैं। एक बार स्वाद मर जाए तो फिर कभी ललक नहीं होती।

ईशांत त्रिपाठी - मैदानी, रीवा (मध्य प्रदेश)

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