दुख बदली - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा

दुख बदली - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा | Hindi Kavita - Dukh Badali - Hemant Kumar Sharma
कभी शाम के सिरहाने
खड़े सूरज को देखा है,
ढलते माथे पर
दुख बदली की रेखा है।

स्मरण किया उन व्यर्थ हुए मूल्यों का,
नदी के वेग,
नदी की श्रांति का।
कष्ट पाए स्नेहिल हृदय से,
कोई अपनी करतूत
कोई कहे
पिछले जनम का लेखा है।

सच जीतेगा, हार झूठ की होगी,
मन पीड़ित इन बातों से,
अनिद्रित कईं रातों से।
पुस्तकीय बात पुस्तक में रही,
उन विरलों को ईश ने भी किया अनदेखा है।

कभी शाम के सिरहाने
खड़े सूरज को देखा है,
ढलते माथे पर
दुख बदली की रेखा है।


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