संदेश
अरमान - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
अनकहा अव्यक्त सा है, अरमान मेरा स्वप्न सा है। ख़्याल तेरा महक सा है, दिल है नादाँ बहकता है। ज़्यादा नहीं कम अरमान रखता है, ख़ुशी हो या ग़म…
जीवन का आधार दस कौशल - गीत - प्रशांत अवस्थी
जीवन का आधार दस कौशल जीवन का आधार। सफल करेंगे इस जीवन को, आओ इन्हें अपनाओ। जीवन का आधार दस कौशल जीवन का आधार। हम शिक्षा की राह चलेंगे।…
जल ही जीवन है - कविता - महेन्द्र सिंह राज
जल ही जीवों का जीवन है, ना जल को बरबाद करो। बहुत ज़रूरी जल संरक्षण, सरवर जल आबाद करो।। बिना पानी तव कृषि सुखानी, भूमि सूख होगी मरुथल…
जल का महत्व - कविता - कवि सुदामा दुबे
जल से ही पैदा होते हैं अंत काल जल जाते है, जल से ही संबंध है सारे जल से रिश्ते नाते है। गीता रामायण मे मिलती महिमा इसकी मिले पुराण, कर…
टेक्नोलॉजी और शिक्षा - लेख - समय सिंह जौल
प्रौद्योगिकी विषय अंग्रेजी में टेक्नोलॉजी के नाम से जाना जाता है। यह एक ग्रीक शब्द "टेकनॉलाजिया" से लिया गया है जहाँ "ट…
तुम्हें जब से - ग़ज़ल - पारो शैवलिनी
छाया है नशा मुझपे देखा है तुम्हें जब से, क़ाबू में नहीं दिल है चाहा है तुम्हें जब से। तस्वीर कोई हुस्न की भाती नहीं हमको, बड़े प्यार से…
नि:शब्द - कविता - अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी"
शून्य सी मैं ताकती नि:शब्द, नि:स्वर, नि:स्वार्थ बेलाज़, बेहिचक, अनकहे शब्दों को बयान करती बेझिझक सी मैं। मदमस्त यादों में हिचकोले खाती…
अनुभूति - गीत - अजय गुप्ता "अजेय"
तेरी शोख अदाओं से पूछा, किस मंज़िल की राही। कौन शहर में रहता बतला, तेरे सपनों का हमराही। तेरी गहरी काली नज़रों में छिपा हुआ है राज़ सुहान…
दे दे मुझको तेरा हाथ - कविता - अंकुर सिंह
ना मुझे धन दौलत, ना मुझे स्वर्ग चाहिए। साथ रहो बस तुम मेरे, ऐसा प्यार भरा पल चाहिए।। नयनों में बसे हो बस एक दूजे के सपने अपने हो। अगर …
आज दीवारें खड़ी हैं - ग़ज़ल - श्रवण निर्वाण
आज दीवारें खड़ी हैं, मज़हबी ईंटें जड़ी हैं। वे कहाँ ये समझ पाए, कौन सी बातें बड़ी हैं। चाहते हैं गिर न जाए, रोज़ तो जंगें लड़ी हैं। लोग चाँद…
नारी तू महान है - कविता - गुड़िया सिंह
तू वन्दनीय, तू पूजनीय, तू ही जगत की सार है, तुझसे है संचलित यह सृष्टि, "ऐ नारी" तू महान है। तू लक्ष्मी, तू सरस्वती, तू शक्ति…
स्वागत हो चैत्र नवरात्र का - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
चैत्र शुक्ल है प्रतिपदा, सनातनी नववर्ष। पूजन कर नवरात्र में, कीर्ति मिले सुख हर्ष।। अभिनन्दन स्वागत करें, मिलें हिन्दू समाज। परिधावी …
वृक्षों की ढलान - कविता - विनय "विनम्र"
कभी वादियाँ गुलज़ार थीं, पेड़ों की बस दीवार थी, पक्षियों की चहचहाहट क्षितिज के भी पार थी। हुक्मरानों की सभा या मासूम का हो बचपना, हर किस…
ख़ामियाँ - ग़ज़ल - कृष्ण गोपाल सोलंकी
ख़ामियाँ ख़ुद की दिखें ना गैरों की गिनवाते हैं, दीवारों के कान हो गए रोशनदान बताते हैं। कोयल अचरज़ में बैठी है जंगल की अफ़वाहों से, शहरों …
कोरोना पर लापरवाही - मुक्तक - संजय राजभर "समित"
न हिन्दू न ही मुसलमान देखता है। न ईमान न बेईमान देखता है। छुआछूत ही है कोरोना की प्रकृति- न भाषा न क्षेत्र इंसान देखता है। कुछ लोग ज…
सखी नार रे - गीत - महेश "अनजाना"
सुंदर सी काया, रूप सलोना सखी नार रे। लेती हैै जान कजरारी अँखियों की धार रे।। चाल मतवारी, कोई मोरनी हो जंगल की, लहराए चोटी कमर तक, झुला…
हाँ मैं आदिवासी हूँ - कविता - आशाराम मीणा
सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास हमारा कहता है। हड़प्पा मोहनजोदड़ो वाली नगरीय सभ्यता है। मानवता का पाठ पढ़ाने वाली यह व्यवस्था है। आदिकाल स…
जब तेरी याद आती है - गीत - प्रवीन "पथिक"
जब-जब आँखें नीर बहाए, सपनों में तुझको न पाए। यही सोचकर घबराए, कि तू उससे कहीं दूर न जाए। हृदय ये भाव जगाती है, जब तेरी याद आती है। इश्…
महँगाई - कविता - कर्मवीर सिरोवा
गैस सिलेंडर महँगा क्या हुआ, बस्ती का हर चूल्हा अब सुर्ख़-ओ-राख़ हुआ। माँओं ने बड़ी कुशलता से सीख लिया था गैस चूल्हा चलाना, गैस सिलेंडर क…
गणेश वंदना - विजात छंद - अभिनव मिश्र "अदम्य"
पधारो देव शिवनंदन। करूँ मैं आपका वन्दन। न पूजा पाठ पूरा है। तुम्हारे बिन अधूरा है। प्रथम तुम पूज्य प्रथमेश्वर। हरो सब विघ्न विघ्नेश्वर…
कम बोलें, मीठा बोलें - लेख - सुधीर श्रीवास्तव
एक आम कहावत है कि अधिकता हर चीज़ की नुकसान करती है, फिर भला अधिक बोलना इससे अछूता कैसे रह सकता है। हम सबको अपने आप की वाणी पर संयम रखना…
अभी अभी तो मिली थी - कविता - अंकुर सिंह
अभी अभी तो मिली थी, मिलते ही तुम छोड़ चली। साथ ना दे पाऊँगी मैं, बोल मुझे तन्हा छोड़ चली।। चाह संग जुड़ रहे थे जो, वो तुझसे मेरे सपने…
मुस्कुरा कर चल मुसाफ़िर - गीत - रमाकांत सोनी
मुस्कुराकर चल मुसाफ़िर, राह आसाँ बनाता जा। सद्भावो की खोल पोटली, जग में प्यार लुटाता जा। दीन दुखी को गले लगाकर, सबका मन हर्षाता जा। कंट…
इश्क़ से गर यूँ डर गए होते - ग़ज़ल - अमित राज श्रीवास्तव "अर्श"
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1212 22 इश्क़ से गर यूँ डर गए होते। छोड़ कर यह शहर गए होते।। मिल गए हमसफ़र से हम वरना, आज त…
फिर क्यों - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
प्रभु! तूने रचा गर हर जड़-चेतन, फिर, क्यों ये मारा-मार जगत में? फिर क्यों ये मारा-मार? प्रभु! तूने रचा गर... सबकुछ तेरा, कुछ भी न मेर…