आज दीवारें खड़ी हैं - ग़ज़ल - श्रवण निर्वाण

आज दीवारें खड़ी हैं,
मज़हबी ईंटें जड़ी हैं।

वे कहाँ ये समझ पाए,
कौन सी बातें बड़ी हैं।

चाहते हैं गिर न जाए,
रोज़ तो जंगें लड़ी हैं।

लोग चाँद पर पहुँचे पर,
सब वही बातें पड़ी हैं।

पास क्यों 'निर्वाण' जाए,
मुल्क़ की क़ौमें अड़ी हैं।

श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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