आशाराम मीणा - कोटा (राजस्थान)
हाँ मैं आदिवासी हूँ - कविता - आशाराम मीणा
शुक्रवार, अप्रैल 09, 2021
सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास हमारा कहता है।
हड़प्पा मोहनजोदड़ो वाली नगरीय सभ्यता है।
मानवता का पाठ पढ़ाने वाली यह व्यवस्था है।
आदिकाल से रह रहा हूँ सच्चा मूल निवासी हूँ।
मत बांटो मुझको धर्मों में भारत का आदिवासी हूँ।।
संस्कृत प्राकृत से पुरानी सभ्यता की परिभाषा है।
पढ़ नहीं पाया कोई उसे मन में यह अभिलाषा है।
मातृ शक्ति की पूजा अर्चना मन करता प्रशंसा है।
पक्के महल बने हुए थे पहला सभ्य नगरवासी हूँ।
मत बाँटो मुझको धर्मों में भारत का आदिवासी हूँ।।
खूब हुए हैं हमले मुझ पर बाहरी आतताइयों का।
सच नहीं लिखे हैं लेख भारत के मूल वासियों का।
इतिहास नया लिखे कोई उस पक्की सभ्यता का।
अन्नधान की करता खेती पुरातन प्रकृतिवासी हूँ।
मत बाँटो मुझको धर्मों में भारत का आदिवासी हूँ।।
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