शून्य सी मैं ताकती
नि:शब्द, नि:स्वर, नि:स्वार्थ
बेलाज़, बेहिचक,
अनकहे शब्दों को बयान करती
बेझिझक सी मैं।
मदमस्त यादों में हिचकोले खाती
कभी बाहर आती, कभी गोता लगा
मैं डूब जाती हूँ।
विछोह का मीठा दर्द,
अरमानों की तेज रफ़्तार,
श्वास श्वास में उमंग भरी,
प्यासे प्यासे दिन, चांदनी भरी रातें,
कहाँ से आया काला साया,
काली परछाई, अरमानों पर छाई।
नि:शब्द खड़ी
तार तार होती यादों को
शून्य सी मैं ताकती।
अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी" - गुवाहाटी (असम)