अनुभूति - गीत - अजय गुप्ता "अजेय"

तेरी शोख अदाओं से पूछा,
किस मंज़िल की राही।
कौन शहर में रहता बतला,
तेरे सपनों का हमराही।

तेरी गहरी काली नज़रों में
छिपा हुआ है राज़ सुहाना।
कमल पंखुरी सुरख लवों से,
लगता है हमराज पुराना।

तेरी काली जुल्फ़ों से पूछा
क्या है तेरा अफ़साना।
कौन है तेरा नूरे नज़र,
किसकी हो तुम रुकसाना।

नख की वाली बोल उठी,
बोल उठी उर माला।
मेरे मन मंदिर में रहता
मेरा पागल दीवाना।

फिर भी कुछ नाम तो होगा,
जो तेरा चाहने बाला।
मेरे मन मंदिर में रहता,
बूझों तुम भी मेरा मतवाला।

सचमुच बहुत चंचला चितवन,
ज़हीन हाथ न आएगी।
प्रियतम के संग सजनी,
एकदिन मॉल में पकड़ी जाएगी।

देख रही क्या एकटक नीलोफ़र,
मधुर मुस्कान लिये।
नूरानी चेहरे की मल्लिका,
अनुपम तेरा रूप खिले।।

अजय गुप्ता "अजेय" - जलेसर (उत्तर प्रदेश)

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