चैत्र शुक्ल है प्रतिपदा, सनातनी नववर्ष।
पूजन कर नवरात्र में, कीर्ति मिले सुख हर्ष।।
अभिनन्दन स्वागत करें, मिलें हिन्दू समाज।
परिधावी संवत्सरी, विक्रमी संवत आज।।
नीति प्रीति सुख संपदा, परहित शान्ति सम्मान।
नवदुर्गे नववर्ष में, दे सम्बल वरदान।।
सबसे सबकी बन्धुता, हो संस्कृति अभिमान।
शैलपुत्री तू कृपा कर, न हो राष्ट्र अपमान।।
ब्रह्मचारिणी तू शिवा, त्याग शील सत्काम।
आज कुपथ तव सन्तति, करे वतन बदनाम।।
मचा रखा आतंक है, महिषासुर बहु देश।
चन्द्रघण्टे कर दलन, दो शान्ति संदेश।।
कुष्माण्डा जगदम्बिके, हरो शोक अभिमान।
अज्ञान तम फैला धरा, दो प्रकाश मति ज्ञान।।
तारक का संहार कर, स्कन्धमातु जग त्राण।
चहुँदिक प्रसरित फिर असुर, नाश करो कल्याण।।
किया एक हुंकार से, धुम्रलोचन संहार।
हरो धूम कात्यायिनी, पापों से उद्धार।।
चामुण्डे वरदायिनी, कालरात्रि विकराल।
रक्तबीज लहू पान कर, है भारत बेहाल।।
शुम्भ निशुम्भ संहारिणि, महागौरी अवतार।
रिद्धि सिद्धि बल बुद्धि दे, सिद्धिदातृ आधार।।
कवि निकुंज कर प्रार्थना, हर आतंकी पाप।
अन्तर्बहि सम शान्ति दे, मिटे राष्ट्र अनुताप।।
बधाईयाँ सब मित्र को, हो जीवन नवनीत।
सौख्य समधुर ज़िंदगी, मंगलमय नवगीत।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली