सुंदर सी काया, रूप सलोना सखी नार रे।
लेती हैै जान कजरारी अँखियों की धार रे।।
चाल मतवारी, कोई मोरनी हो जंगल की,
लहराए चोटी कमर तक, झुलाए बहार रे।
चंचल नयन चितवन उपवन गीत गाए हो,
रुनझुन पाजेब संग, छेड़े पवन सितार रे।
दरिया ये नदियाँ, मचले समंदर की लहरें,
साहिल से टकराए, छूटा जाए पतवार रे।
झरनों में आके कोई हुस्न भींगे इतराए तो,
पर्वत पे बादल बरसाए रस की फुहार रे।
प्रेम रूपा, गीत स्वरूपा जैसी रचना है वो,
'अनजाना' क्या, हर कोई चाहे दीदार रे।
महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)