छाया है नशा मुझपे देखा है तुम्हें जब से,
क़ाबू में नहीं दिल है चाहा है तुम्हें जब से।
तस्वीर कोई हुस्न की भाती नहीं हमको,
बड़े प्यार से इस दिल में बिठाया है तुम्हें जब से।
आँखें तेरी ग़ज़ल है और होंठ रुबाई,
हर अंग को चूमा है सराहा है तुम्हें जब से।
अब ख़ौफ़ नहीं मुझको अंजामे-मुहब्बत का
पूजा है मुहब्बत को पाया है तुम्हें जब से।।
पारो शैवलिनी - चितरंजन (पश्चिम बंगाल)